
पहाड़ प्यार है
ऊँचे पर्वत,
वो गोल रास्ते,
थकी हुई, मैं सोचती हूँ,
हर मोड़ पर,
अब नज़रे हटाँउगी,
पर दिल नहीं मानता,
आँख झपकाने को भी,
डरता है दिल,
कहीं कोई नज़ारा छूट न जाए,
या डर कोई और भी है शायद,
एक डर, सबसे बेचैन,
खो जाने का डर,
या भटकने का,
या डर ये कि फिर इस सब का दीदार न होगा?
या डर ये कि,
वजह न रही यूँ बेवजह सोचने की?
थकी हुई, टूटी हुई,
मैं सोचती हूँ|
Poem by Harshita Arya (@harshhhita)
That’s so lovely lines